भाग्य से संबंधित भाव-आचार्यों ने नवम भाव को भाग्य का नाम दिया| नवम और नवमेश की शुभाशुभ स्थिति से भाग्य निर्णय होता है| नवम में जैसी राशि और ग्रह होते हैं, उसी के अनुपात में व्यक्ति का भाग्य होता है| इसके अलावा चन्द्र लग्न से भी नवम भाव देखना चाहिए| नवम अर्थात् पंचम भी भाग्य का प्रतिनिधित्व करता है| लेकिन मूल रूप से भाग्य
जानने के लिए नवम की स्थिति ही विचारणीय है|
प्रायः अनुभव में आता है कि नवमेश यदि निर्बल हो तो प्रायः भाग्योदय देरी से होता है या फिर पर्याप्त सफलताएँ नहीं मिलती है|भाग्योदय किस क्षेत्र में होगा-कार्य क्षेत्रों में क्रांति के कारण आज आजीविका के कार्यों का वर्णन करना संभव नहीं रह गया है| कुछ सौ वर्षों पहले तक हमारे कार्य के क्षेत्र सीमित थे|आज के विशेषज्ञता के युग के कारण एक ही प्रकृति के काम को अनेक लोग मिलकर सम्पन्न करते हैं| यद्यपि इसके कारण कार्य की गुणवत्ता में पर्याप्त वृद्धि होती है| एक उदाहरण देखें| जब कोई फिल्म निर्माता किसी फीचर फिल्म के निर्माण के सम्बन्ध में विचार करता है तो सर्वप्रथम उसे कहानी का विचार (कांसेप्ट) चाहिए| विचार के चयन के बाद उस विचार को कथाकार के रूप में ढालता है फिर इसकी पटकथा लिखी जाती है|
इन सबके बाद संवाद लिखे जाते हैं| आश्चर्य है कि यहाँ तक के कार्य को चार व्यक्ति सम्पन्न करते हैं| एक जमाना था जब यह कार्य एक या दो ही व्यक्ति कर दिया करते थे|यही स्थिति दुसरे सभी क्षेत्रों में है| इसके फलस्वरूप आजीविका के स्रोत का वर्गीकरण करना इतना आसान नहीं रह गया है| इसके बावजूद मैं यहाँ आजीविका की साधनों को दो प्रमुख वर्गों में बाँट रहा हूँ| पहले वर्ग में है स्वतंत्र कार्य करने का और दुसरे वर्ग में है पराधीन रहकर कार्य करने वाले| स्वतंत्र कार्य करने वाले दुसरे वर्ग में वे लोग जो कि अपना नीजी व्यवसाय करते हैं| दूसरा वर्ग निजी और सरकारी क्षेत्र में नौकरी करने वालों का है| जब षष्ट भाव और षष्ठेश बलवान हो तो जातक नौकरी करता है| इसके विपरीत दशम और दशमेश बलवान होने पर स्वयं का व्यवसाय होता है| भाग्योदय का क्षेत्र निर्धारण करने के लिए दो भावों का आकलन करना आवश्यक है| प्रायः विद्वानों ने दशम भाव से आजिवीका को देखने के निर्देश दिए हैं| दशम भाव में पड़ी राशि और ग्रहों के आधार पर आजीविका के साधनों का आकलन किया जा सकता है| यह एक स्थूल आकलन है| इसके आधार पर साधारणतया आजीविका की स्थूल प्रकृति को जाना जा सकता है|
जैसे दशम में शनि की राशि होने पर व्यक्ति शनि से संबंधित कार्य करेगा जैसे- लोहे, लकड़ी खनिज पदार्थों का खनन, पेट्रोलियम और उससे संबंधित पदार्थ और काले रंग के खाद्य पदार्थ| इसी प्रकार बुध की राशि होने पर व्यक्ति प्रकाशन, खुदरा, विक्रेता, लेखन आदि से संबंधित कार्य करेगा|
उपरोक्त पद्धति से राशि के आधार पर केवल स्थूल आकलन ही प्राप्त किये जा सकते हैं| किसी के व्यवसाय का शुक्ष्म आकलन करने के लिए सूर्य से दशम का सहारा भी लिया जाना चाहिए| अनुभव में यह सटीक सिद्ध होता है| सूर्य से दशमेश की व्यवसाय चयन में भूमिका का यह अच्छा उदाहरण है| दशम स्थान में उच्च का सूर्य है और औरी से दशम में शनि की मकर राशि पड़ी है|
शास्त्रों में सूर्य के दशम में पड़ी राशि और उसके स्वामी ग्रह की प्रकृति के अनुसार व्यवसाय का निर्णय करने की अनुशंसा की गई है जातक तकनीकी कार्यों के सरकारी ठेके लेता है| चतुर्थ और दशम, दोनों केन्द्रों में उच्चस्थ ग्रह हैं, जो जातक को धरातल से ऊपर उठाने में सहयोग करते हैं| पारिवारिक पृष्ठभूमि की तुलना में जातक बहुत अच्छी प्रगति की है| पंचम चन्द्रमा की उपस्थिति संतान सम्बन्धी चिंताओं को व्यक्त करती है|
भाग्योदय का समय निर्धारण- नवम भाव को चूँकि भाग्य का स्थान माना गया है इसलिए भाग्योदय के वर्ष को निर्धारित करने के लिए सर्वप्रथम भाग्य स्थान के स्वामी अर्थात नवमेश से संबंधित वर्ष ही महत्वपूर्ण होता है| निम्नांकित सारिणी में नवमेश के अनुसार भाग्योदय से संबंधित वर्ष दर्शाए गए हैं|
ग्रह | भाग्यस्थान में राशियाँ | भाग्योदय का संभावित वर्ष |
सूर्य | सिंह | २२ वां वर्ष |
चन्द्रमा | कर्क | २५ वां वर्ष |
मंगल | मेष या वृश्चिक | २८ वां वर्ष |
बुध | मिथुन या कन्या | ३२ वां वर्ष |
गुरु | धनु या मीन | १८ वां वर्ष |
शुक्र | वृष या तुला | २४ वां वर्ष |
शनि | मकर या कुम्भ | ३६ वां वर्ष |
राहू | मकर या कुम्भ | ४२ वां वर्ष |
(१) भाग्य स्थान में जब शुभ ग्रह पड़े हो तो शीघ्र भाग्योदय होता है| पाप या क्रूर ग्रह होने पर भाग्योदय में विलंब होता है|
(२) प्रायः अनुभव में आता है कि भाग्येश जब अष्टमस्थ हो तो भाग्योदय में अड़चने आती है|
(३) चन्द्रमा से द्वितीय और द्वादश में पाप ग्रह हो, चन्द्रमा से केंद्र में कोई अशुभ ग्रह न हो और नहीं चन्द्रमा पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो व्यक्ति प्रौढ़ावस्था तक संघर्षशील
रहता है|
(४) केन्द्रों (१,४,७,१०) में शुभ ग्रहों का होना भाग्योदय में सहायक होता है| कुछ मामलों में केन्द्रों के शुभ ग्रहों से हीन होने पर भाग्योदय में विलंब होता है, इसके विपरीत पाप ग्रह यदि केन्द्रों के स्वामी हो तो शुभ होते हैं|
(५) गोचर ग्रहों की भाग्योदय में अच्छी भूमिका होती है| गोचर ग्रहों का फलों को आयु के १८ वें वर्ष के बाद फलित करना चाहिए शनि की भूमिका हमेशा निर्णायक होती है|
आयु के १८ वें वर्ष के उपरांत जब शनि लग्न या चन्द्रमा से तृतीय, नवम दशम या एकादश में विचरण करें तो भाग्योदय करता है|
(६) नवमेश जब उच्चस्थ स्वगृही या मित्रक्षेत्री होकर दशम में पड़े तो युवावस्था में भाग्योदय होता है| यह एक राजयोग भी है| दशम भाव में उच्च का सूर्य भी शीघ्र भाग्योदय करता है|